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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 63: राजा दशरथ का शोक और उनका कौसल्या से अपने द्वारा मुनि कुमार के मारे जाने का प्रसङ्ग सुनाना
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श्लोक 14
श्लोक
2.63.14
देव्यनूढा त्वमभवो युवराजो भवाम्यहम्।
तत: प्रावृडनुप्राप्ता मम कामविवर्धिनी॥ १४॥
अनुवाद
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देवि! जब तुम मेरी पत्नी नहीं थी और मैं भी सिर्फ़ युवराज था, तब की बात है। वर्षा ऋतु मेरी इच्छाओं और भावनाओं को बढ़ाने वाली थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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