श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 60: कौसल्या का विलाप और सारथि सुमन्त्र का उन्हें समझाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.60.22 
 
 
विधूय शोकं परिहृष्टमानसा
महर्षियाते पथि सुव्यवस्थिता:।
वने रता वन्यफलाशना: पितु:
शुभां प्रतिज्ञां प्रतिपालयन्ति ते॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  वे तीनों भाई शोक को त्यागकर प्रसन्नचित्त होकर महर्षियों के मार्ग पर दृढ़तापूर्वक स्थित हैं। वे वन में निवास करते हुए फल-मूल खाकर पिता की उत्तम प्रतिज्ञा का पालन कर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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