श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 60: कौसल्या का विलाप और सारथि सुमन्त्र का उन्हें समझाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.60.18 
 
 
अलक्तरसरक्ताभावलक्तरसवर्जितौ।
अद्यापि चरणौ तस्या: पद्मकोशसमप्रभौ॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  जिनमें महावर का रंग नहीं लग रहा है, अर्थात महावर लगा होने पर भी जिस पर महावर का रंग नहीं दिखता, ऐसे सीता के वे दोनों चरण आज भी महावर के समान ही लाल और कमल के भीतर के भाग के समान कान्तिमान हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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