श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 60: कौसल्या का विलाप और सारथि सुमन्त्र का उन्हें समझाना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  2.60.16 
 
 
अध्वना वातवेगेन सम्भ्रमेणातपेन च।
न विगच्छति वैदेह्याश्चन्द्रांशुसदृशी प्रभा॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  सफर के थकान, हवा की तेज गति, डरावनी चीजों को देखकर होने वाली घबराहट और सूरज की तेज़ धूप के बावजूद भी विदेहराज कुमारी की चन्द्रकिरणों के समान सुंदर कांति उनसे दूर नहीं होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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