अध्वना वातवेगेन सम्भ्रमेणातपेन च।
न विगच्छति वैदेह्याश्चन्द्रांशुसदृशी प्रभा॥ १६॥
अनुवाद
सफर के थकान, हवा की तेज गति, डरावनी चीजों को देखकर होने वाली घबराहट और सूरज की तेज़ धूप के बावजूद भी विदेहराज कुमारी की चन्द्रकिरणों के समान सुंदर कांति उनसे दूर नहीं होती है।