श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 59: सुमन्त्र द्वारा श्रीराम के शोक से जडचेतन एवं अयोध्यापुरी की दुरवस्था का वर्णन तथा राजा दशरथ का विलाप  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  2.59.33 
 
 
अशोभनं योऽहमिहाद्य राघवं
दिदृक्षमाणो न लभे सलक्ष्मणम्।
इतीव राजा विलपन् महायशा:
पपात तूर्णं शयने स मूर्च्छित:॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  "मैं लक्ष्मण समेत श्रीराम को देखना चाहता हूँ, परंतु इस समय यहाँ मुझे वे नहीं दिख रहे हैं। यह मेरे द्वारा किए गए बहुत बड़े पाप का ही फल है।" इस प्रकार विलाप करते हुए महायशस्वी राजा दशरथ तुरंत ही मूर्च्छित होकर शय्या पर गिर पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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