श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 58: महाराज दशरथ की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम और लक्ष्मण के संदेश सुनाना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.58.37 
 
 
तथैव रामोऽश्रुमुख: कृताञ्जलि:
स्थितोऽब्रवील्लक्ष्मणबाहुपालित:।
तथैव सीता रुदती तपस्विनी
निरीक्षते राजरथं तथैव माम्॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण की मज़बूत भुजाओं से सुरक्षित श्री राम खड़े थे और उनके हाथ सम्मानपूर्वक जुड़े हुए थे। उनके चेहरे पर आँसुओं की धारा बह रही थी। तपस्विनी सीता भी रो रही थीं और कभी इस रथ की ओर देखती थीं, तो कभी मेरी ओर।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽष्टपञ्चाश: सर्ग:॥ ५८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें अट्ठावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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