श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 58: महाराज दशरथ की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम और लक्ष्मण के संदेश सुनाना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  2.58.34 
 
 
जानकी तु महाराज नि:श्वसन्ती तपस्विनी।
भूतोपहतचित्तेव विष्ठिता विस्मृता स्थिता॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  महाराज! तपस्विनी सीता लंबी साँस खींचती हुई खड़ी थीं, मानो कोई भूत उनमें समा गया हो। वे सब कुछ भूल गई थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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