श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 58: महाराज दशरथ की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम और लक्ष्मण के संदेश सुनाना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.58.32 
 
 
सर्वलोकप्रियं त्यक्त्वा सर्वलोकहिते रतम्।
सर्वलोकोऽनुरज्येत कथं चानेन कर्मणा॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  सर्वलोकप्रिय अर्थात् सभी लोकों को प्रिय होने वाले श्रीराम का त्याग करके, जो सर्वलोक के हित में तत्पर थे, राजा दशरथ ने जो यह क्रूरतापूर्ण पापकर्म किया है, इसके कारण अब सारा संसार उनमें कैसे अनुराग रख सकता है? (अब उनमें राजोचित गुण कहाँ रह गए हैं?)।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.