श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 58: महाराज दशरथ की आज्ञा से सुमन्त्र का श्रीराम और लक्ष्मण के संदेश सुनाना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.58.30 
 
 
असमीक्ष्य समारब्धं विरुद्धं बुद्धिलाघवात्।
जनयिष्यति संक्रोशं राघवस्य विवासनम्॥३०॥
 
 
अनुवाद
 
  विचारहीनता या बुद्धि की अल्पता के कारण उचित-अनुचित पर विचार किये बिना जिस राम के वनवास रूपी शास्त्रविरुद्ध कार्य को आरम्भ किया गया है, वह निश्चित ही निंदा और दुःख का जनक होगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.