श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 56: श्रीराम आदि का चित्रकूट में पहुँचना, वाल्मीकिजी का दर्शन करके श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मणद् वारा पर्णशाला का निर्माण,सबका कुटी में प्रवेश  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  2.56.25 
 
 
ऐणेयं श्रपयस्वैतच्छालां यक्ष्यामहे वयम्।
त्वर सौम्यमुहूर्तोऽयं ध्रुवश्च दिवसो ह्ययम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! तुम इस ताजे गजकन्द को पकाओ। हम पर्णशाला में विराजमान देवताओं की पूजा करेंगे। जल्दी करो क्योंकि यह एक शुभ मुहूर्त है और आज का दिन ‘ध्रुव’ के नाम से जाना जाता है। इसलिए यह शुभ कार्य आज ही होना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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