श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.55.32 
 
 
क्रोशमात्रं ततो गत्वा भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ।
बहून् मेध्यान् मृगान् हत्वा चेरतुर्यमुनावने॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  क्रोशमात्रं गमनानंतर राम और लक्ष्मण नामक भाई (जीवों के कल्याण के लिए) रास्ते में मिले हिंसक पशुओं को मारते हुए यमुना तट वाले वन में विचरण करने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.