वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना
»
श्लोक 31
श्लोक
2.55.31
विचित्रवालुकजलां हंससारसनादिताम्।
रेमे जनकराजस्य सुता प्रेक्ष्य तदा नदीम्॥ ३१॥
अनुवाद
play_arrowpause
जनकराज की पुत्री सीता उस समय यमुना नदी के विचित्र रेत और जल से सुशोभित तथा हंस और सारसों के मधुर कलरव से गुंजायमान होने पर बहुत प्रसन्न होती थीं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.