श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  2.55.31 
 
 
विचित्रवालुकजलां हंससारसनादिताम्।
रेमे जनकराजस्य सुता प्रेक्ष्य तदा नदीम्॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  जनकराज की पुत्री सीता उस समय यमुना नदी के विचित्र रेत और जल से सुशोभित तथा हंस और सारसों के मधुर कलरव से गुंजायमान होने पर बहुत प्रसन्न होती थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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