श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.55.30 
 
 
रमणीयान् बहुविधान् पादपान् कुसुमोत्करान्।
सीतावचनसंरब्ध आनयामास लक्ष्मण:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण ने सीता के कहने पर तुरंत ही विभिन्न प्रकार के पेड़ों की मनोहारी शाखाएँ और फूलों के गुच्छे लाकर उन्हें दे दिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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