श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.55.20 
 
 
यक्ष्ये त्वां गोसहस्रेण सुराघटशतेन च।
स्वस्ति प्रत्यागते रामे पुरीमिक्ष्वाकुपालिताम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  इक्ष्वाकु वंश के वीरों द्वारा रक्षित अयोध्या नगरी में भगवान श्रीराम के सकुशल लौट आने पर मैं आपके किनारे एक हजार गायों का दान करूँगी और सैकड़ों देवताओं को अर्पित की जाने वाली दुर्लभ वस्तुएँ अर्पित करके आपकी पूजा पूरी करूँगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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