श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  2.55.19 
 
 
कालिन्दीमध्यमायाता सीता त्वेनामवन्दत।
स्वस्ति देवि तरामि त्वां पारयेन्मे पतिर्व्रतम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  जब सीता यमुना नदी के बीचोबीच पहुँचीं, तो उन्होंने नदी को प्रणाम किया और कहा, "हे देवी! मैं इस बेड़े से आपके पार जा रही हूँ। कृपया ऐसी कृपा करें कि हम सुरक्षित रूप से पार हो जाएं और मेरे पति अपनी वनवास संबंधी प्रतिज्ञा को निर्विघ्न पूरा कर सकें।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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