श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.55.18 
 
 
आरोप्य सीतां प्रथमं संघाटं परिगृह्य तौ।
तत: प्रतेरतुर्यत्तौ प्रीतौ दशरथात्मजौ॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार से पहले सीता जी को नाव पर चढ़ाकर महाराजा दशरथ के पुत्र श्रीराम और लक्ष्मण जी ने उस नाव को पकड़कर खेना शुरू कर दिया। उन्होंने बड़ी मेहनत और खुशी-खुशी से नदी पार करना शुरू कर दिया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.