श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 55: श्रीराम आदि का अपने ही बनाये हुए बेडे से यमुनाजी को पार करना, सीता की यमुना और श्यामवट से प्रार्थना,यमुनाजी के समतल तट पर रात्रि में निवास करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.55.13 
 
 
अथासाद्य तु कालिन्दीं शीघ्रस्रोतस्विनीं नदीम्।
चिन्तामापेदिरे सद्यो नदीजलतितीर्षव:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  कालिन्दी नदी का स्रोत अत्यंत तीव्र गति से बह रहा था। वहाँ पहुँचकर वे चिंतित हुए कि नदी को कैसे पार किया जाए; क्योंकि वे यमुनाजी के जल को तुरंत पार करना चाहते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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