श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 54: लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का भरद्वाज-आश्रम में जाना, मुनि का उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन  »  श्लोक 39-40
 
 
श्लोक  2.54.39-40 
 
 
नानानगगणोपेत: किन्नरोरगसेवित:॥ ३९॥
मयूरनादाभिरतो गजराजनिषेवित:।
गम्यतां भवता शैलश्चित्रकूट: स विश्रुत:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  चित्रकूट पर्वत नाना प्रकार के वृक्षों से हरा-भरा है और विभिन्न जीवों का निवास स्थान है। वहाँ किन्नर, सर्प और मोर पाए जाते हैं। मोरों के मधुर कलरव से पर्वत और भी मनोरम लगता है। कई विशालकाय हाथी भी इस पर्वत पर विचरण करते हैं। तुम इसी पर्वत पर जाओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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