श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 54: लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम का भरद्वाज-आश्रम में जाना, मुनि का उन्हें चित्रकूट पर्वत पर ठहरने का आदेश तथा चित्रकूट की महत्ता एवं शोभा का वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  2.54.28 
 
 
दशक्रोश इतस्तात गिरिर्यस्मिन् निवत्स्यसि।
महर्षिसेवित: पुण्य: पर्वत: शुभदर्शन:॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  हे तात! यहाँ से दस कोस (वैकल्पिक व्याख्या के अनुसार ३० कोस) की दूरी पर एक सुंदर पर्वत है जिसकी महर्षि सेवा करते हैं। वह अत्यंत पवित्र है और तुम्हें वहीं निवास करना होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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