श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  2.53.23 
 
 
शोचन्त्याश्चाल्पभाग्याया न किंचिदुपकुर्वता।
पुत्रेण किमपुत्राया मया कार्यमरिंदम॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  शोकाकुल मां के लिए मैं एक बेकार पुत्र हूं, जिससे उन्हें कोई फ़ायदा नहीं पहुंच रहा है। मेरी मां का जीवन दुखों से भरा है, और उनके दुखों का कारण मैं ही हूं। मेरी वजह से वे हमेशा दुखी रहती हैं। मैं एक अपराधी पुत्र हूं, जिसने अपनी मां को सिवाय दुख के कुछ नहीं दिया। मैं अपनी मां के लिए कुछ करना चाहता हूं, लेकिन मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूं। मैं एक लाचार पुत्र हूं, जिसकी अपनी मां की मदद करने की ताकत नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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