श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.53.22 
 
 
मन्ये प्रीतिविशिष्टा सा मत्तो लक्ष्मण सारिका।
यत्तस्या: श्रूयते वाक्यं शुक पादमरेर्दश॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं समझता हूँ कि सारिका माँ कौसल्या से भी ज़्यादा मुझसे प्यार करती है। क्योंकि वो हमेशा यही कहती है कि, "ऐ तोते! तू शत्रु के पैर को काट खा।" वो एक पक्षी होते हुए भी मेरी माँ का इतना ख्याल रखती है, और मैं उनका बेटा होने के बाद भी उनके लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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