श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.53.20 
 
 
मया हि चिरपुष्टेन दु:खसंवर्धितेन च।
विप्रयुज्यत कौसल्या फलकाले धिगस्तु माम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरी माता ने मुझे बहुत समय तक पाला-पोसा और अपने दुखों को सहकर मुझे बड़ा किया। अब जब मुझे अपने पुत्र से सुख का फल मिलने का अवसर मिला, तो मैंने माता कौशल्या को अपने से अलग कर दिया। मुझे लज्जा आती है!
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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