श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.53.18 
 
 
क्षुद्रकर्मा हि कैकेयी द्वेषादन्यायमाचरेत्।
परिदद्याद्धि धर्मज्ञ गरं ते मम मातरम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  धर्मज्ञ लक्ष्मण ! कैकेयी अपने छोटे-छोटे कर्मों और द्वेष के कारण अन्याय कर सकती है। वह तुम्हारी और मेरी माता को ज़हर भी दे सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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