श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 53: श्रीराम का राजा को उपालम्भ देते हुए कैकेयी से कौसल्या आदि के अनिष्ट की आशङ्का बताकर लक्ष्मण को अयोध्या लौटाने के लिये प्रयत्न करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  2.53.13 
 
 
अर्थधर्मौ परित्यज्य य: काममनुवर्तते।
एवमापद्यते क्षिप्रं राजा दशरथो यथा॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  यह सत्य है कि अर्थ और धर्म का त्याग करके जो व्यक्ति केवल काम का अनुसरण करता है, वह उसी प्रकार शीघ्र आपत्ति में पड़ जाता है, जैसे इस समय महाराज दशरथ पड़े हैं। काम का अर्थ है इच्छाओं की पूर्ति करना। जब कोई व्यक्ति अर्थ और धर्म का त्याग करके केवल काम का अनुसरण करता है, तो वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकता है। इससे वह अनैतिक और पापपूर्ण कार्यों में भी लिप्त हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को शीघ्र ही आपत्ति का सामना करना पड़ता है। महाराज दशरथ ने भी अर्थ और धर्म का त्याग करके काम का अनुसरण किया था। उन्होंने अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए कैकेयी को महारानी बनाया और श्रीराम को वनवास भेज दिया। इससे उन्हें शीघ्र ही आपत्ति का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र श्रीराम को खो दिया और स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हुए। अतः यह सत्य है कि अर्थ और धर्म का त्याग करके जो व्यक्ति केवल काम का अनुसरण करता है, वह उसी प्रकार शीघ्र आपत्ति में पड़ जाता है, जैसे इस समय महाराज दशरथ पड़े हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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