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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना
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श्लोक 54
श्लोक
2.52.54
तव शुश्रूषणं मूर्ध्ना करिष्यामि वने वसन्।
अयोध्यां देवलोकं वा सर्वथा प्रजहाम्यहम्॥ ५४॥
अनुवाद
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हे प्रभु! मैं वन में निवास करके अपने सिर से (अपने संपूर्ण शरीर से) आपकी सेवा करूँगा और इस सुख की तुलना में अयोध्या और देवलोक का भी सर्वथा त्याग कर दूँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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