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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना
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श्लोक 42
श्लोक
2.52.42
दूरेऽपि निवसन्तं त्वां मानसेनाग्रत: स्थितम्।
चिन्तयन्तोऽद्य नूनं त्वां निराहारा: कृता: प्रजा:॥ ४२॥
अनुवाद
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तुम दूर रहकर भी अपने प्रजा के हृदय में निवास करते हो और हमेशा उनके सामने ही खड़े रहते हो। निश्चित रूप से इस समय प्रजा के सभी लोगों ने तुम्हारा ही चिंतन करते हुए खाना-पीना छोड़ दिया होगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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