श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  2.52.33 
 
 
भरतं च परिष्वज्य यौवराज्येऽभिषिच्य च।
अस्मत्संतापजं दु:खं न त्वामभिभविष्यति॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  आपको भरत को गले लगाना होगा और युवराज के पद पर अभिषिक्त करके हमारे वियोग से होने वाले दुःख को कम करना होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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