श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.52.22 
 
 
इक्ष्वाकूणां त्वया तुल्यं सुहृदं नोपलक्षये।
यथा दशरथो राजा मां न शोचेत् तथा कुरु॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  सुमंत जी, मैं समझता हूँ कि इक्ष्वाकु वंश के हित की बात में आपसे बेहतर कोई दूसरा मित्र नहीं हो सकता। आप ऐसा प्रयास करें कि महाराज दशरथ को मेरे लिए शोक न हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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