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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना
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श्लोक 16
श्लोक
2.52.16
नातिक्रान्तमिदं लोके पुरुषेणेह केनचित्।
तव सभ्रातृभार्यस्य वास: प्राकृतवद् वने॥ १६॥
अनुवाद
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रघुनंदन! जिस नियति के कारण तुम्हें भाई और पत्नी के साथ साधारण मनुष्यों की तरह वन में रहना पड़ रहा है, उस नियति का उल्लंघन इस दुनिया में किसी पुरुष ने नहीं किया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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