श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 52: श्रीराम की आज्ञा से गुह का नाव मँगाना, श्रीराम का सुमन्त्र को समझाबुझाकर अयोध्यापुरी लौट जाने के लिये आज्ञा देना,सीता की गङ्गाजी से प्रार्थना  »  श्लोक 102
 
 
श्लोक  2.52.102 
 
 
तौ तत्र हत्वा चतुरो महामृगान्
वराहमृश्यं पृषतं महारुरुम्।
आदाय मेध्यं त्वरितं बुभुक्षितौ
वासाय काले ययतुर्वनस्पतिम्॥ १०२॥
 
 
अनुवाद
 
  तब वे दोनों भाई वराह, ऋष्य, पृषत् और महारुरु इन चारों महामृगों का शिकार करके उन्हें मार गिराया। इसके बाद जब उन्हें भूख लगी, तो उन्होंने पवित्र कंद-मूल आदि लेकर शाम के समय विश्राम करने के लिए एक वृक्ष के नीचे जाने का फैसला लिया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे द्विपञ्चाश: सर्ग:॥ ५२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें बावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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