श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 51: निषादराज गुह के समक्ष लक्ष्मण का विलाप  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  2.51.27 
 
 
तथा हि सत्यं ब्रुवति प्रजाहिते
नरेन्द्रसूनौ गुरुसौहृदाद् गुह:।
मुमोच बाष्पं व्यसनाभिपीडितो
ज्वरातुरो नाग इव व्यथातुर:॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रजा के हित में लगे हुए राजकुमार लक्ष्मण जब अपने बड़े भाई से प्रेमवश उपरोक्त बातें कह रहे थे, उस समय निषादराज गुह ये बातें सुनकर दुःख से भर गए और वेदना से परेशान हो हाथी की तरह आँसू बहाने लगे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे एकपञ्चाश: सर्ग:॥ ५१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें इक्यावनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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