श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 50: श्रीराम का शृङ्गवेरपुर में गङ्गा तट पर पहुँचकर रात्रि में निवास, वहाँ निषादराज गुह द्वारा उनका सत्कार  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  2.50.45 
 
 
अश्वानां खादनेनाहमर्थी नान्येन केनचित् ।
एतावतात्र भवता भविष्यामि सुपूजित:॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरे लिए केवल वही चीज़ें आवश्यक हैं जिनका इस्तेमाल घोड़े खाते-पीते हैं। किसी अन्य चीज़ की मुझे ज़रूरत नहीं है। बस घोड़ों को खिला-पिलाकर तुम मेरा पूरा सत्कार कर सकते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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