श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 44: सुमित्रा का कौसल्या को आश्वासन देना  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  2.44.18-19 
 
 
दु:खजं विसृजत्यश्रु निष्क्रामन्तमुदीक्ष्य यम्।
अयोध्यायां जन: सर्व: शोकवेगसमाहत:॥ १८॥
कुशचीरधरं वीरं गच्छन्तमपराजितम्।
सीतेवानुगता लक्ष्मीस्तस्य किं नाम दुर्लभम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  नगर से निकलते हुए देखकर अयोध्या का पूरा जनसमुदाय दुख के आवेग से बेदम होकर नेत्रों से दुख के आँसू बहा रहा है, कुश और चीर धारण किए हुए वन को जाते हुए कदम से कदम मिलाकर जिस अपराजित नित्यविजयी वीर के पीछे-पीछे साक्षात् लक्ष्मी ही सीता के रूप में गई हैं, उनके लिए क्या दुर्लभ है?॥ १८-१९॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.