नगर से निकलते हुए देखकर अयोध्या का पूरा जनसमुदाय दुख के आवेग से बेदम होकर नेत्रों से दुख के आँसू बहा रहा है, कुश और चीर धारण किए हुए वन को जाते हुए कदम से कदम मिलाकर जिस अपराजित नित्यविजयी वीर के पीछे-पीछे साक्षात् लक्ष्मी ही सीता के रूप में गई हैं, उनके लिए क्या दुर्लभ है?॥ १८-१९॥