श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 41: श्रीराम के वनगमन से रनवास की स्त्रियों का विलाप तथा नगरनिवासियों की शोकाकुल अवस्था  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  2.41.9-10 
 
 
नाग्निहोत्राण्यहूयन्त नापचन् गृहमेधिन:।
अकुर्वन् न प्रजा: कार्यं सूर्यश्चान्तरधीयत॥ ९॥
व्यसृजन् कवलान् नागा गावो वत्सान् न पाययन्।
पुत्रां प्रथमजं लब्ध्वा जननी नाभ्यनन्दत॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  उस दिन अग्निहोत्र बंद हो गए, घरों में भोजन नहीं बना, प्रजा ने कोई काम नहीं किया, सूर्य देवता अस्त हो गए, हाथियों ने अपने मुँह से चारा छोड़ दिया, गायों ने बछड़ों को दूध नहीं पिलाया और पहली बार पुत्र को जन्म देने के बावजूद कोई माँ खुश नहीं हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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