श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 40: सीता, राम और लक्ष्मण का दशरथ की परिक्रमा करके कौसल्या आदि को प्रणाम करना, सीता सहित श्रीराम और लक्ष्मण का रथ में बैठकर वन की ओर प्रस्थान  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  2.40.50 
 
 
यमिच्छेत् पुनरायातं नैनं दूरमनुव्रजेत्।
इत्यमात्या महाराजमूचुर्दशरथं वच:॥ ५०॥
 
 
अनुवाद
 
  इधर मन्त्रियोंने महाराज दशरथसे कहा—‘राजन्! जिसके लिये यह इच्छा की जाय कि वह पुन: शीघ्र लौट आये, उसके पीछे दूरतक नहीं जाना चाहिये’॥ ५०॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.