श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 40: सीता, राम और लक्ष्मण का दशरथ की परिक्रमा करके कौसल्या आदि को प्रणाम करना, सीता सहित श्रीराम और लक्ष्मण का रथ में बैठकर वन की ओर प्रस्थान  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  2.40.47 
 
 
नाश्रौषमिति राजानमुपालब्धोऽपि वक्ष्यसि।
चिरं दु:खस्य पापिष्ठमिति रामस्तमब्रवीत्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  राम ने सुमंत से कहा, "यहाँ अधिक समय तक रुकना मेरे और पिताजी के लिए बहुत दुखदायी होगा। इसलिए रथ को आगे बढ़ाओ। अगर लौटने पर महाराज उलाहना दें, तो तुम कह देना कि मैंने आपकी बात नहीं मानी।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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