इमां महेन्द्रोपम जातगर्धिनीं
तथा विधातुं जननीं ममार्हसि।
यथा वनस्थे मयि शोककर्शिता
न जीवितं न्यस्य यमक्षयं व्रजेत्॥ १७॥
अनुवाद
मेरे प्रभु, आप कृपया मेरी माता को हमेशा ऐसे हालातों में रखें, जिससे उन्हें मेरे दूर रहने का दुख इतना ना सताए कि वे प्राण त्याग दें और यमलोक चली जाएं। वे इंद्र के समान तेजस्वी हैं और लगातार मुझे देखने के लिए उत्सुक रहेंगी। इसलिए, मेरी माता को हमेशा ऐसी परिस्थितियों में रखें, जिससे उन्हें मेरे बारे में चिंतित होने का अवसर ही न मिले।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डेऽष्टात्रिंश: सर्ग:॥ ३८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें अड़तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३८॥