श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 38: राजा दशरथ का सीता को वल्कल धारण कराना अनुचित बताकर कैकेयी को फटकारना और श्रीराम का उनसे कौसल्या पर कृपादृष्टि रखने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  2.38.14-15 
 
 
इयं धार्मिक कौसल्या मम माता यशस्विनी।
वृद्धा चाक्षुद्रशीला च न च त्वां देव गर्हते॥ १४॥
मया विहीनां वरद प्रपन्नां शोकसागरम्।
अदृष्टपूर्वव्यसनां भूय: सम्मन्तुमर्हसि॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  हे धर्मात्मन्! मेरी यशस्वी माता कौसल्या अब वृद्ध हो गई हैं। उनकी प्रकृति बहुत ही ऊँची और उदार है। देव! ये आपकी कभी निंदा नहीं करती हैं। उन्होंने पहले कभी इतना गंभीर संकट नहीं देखा होगा। वरदायक नरेश! मैं न रहने पर ये शोक के सागर में डूब जाएँगी। इसलिए आप सदा इनका अधिक सम्मान करते रहें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.