वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 37: श्रीराम आदि का वल्कल-वस्त्र-धारण, गुरु वसिष्ठ का कैकेयी को फटकारते हुए सीता के वल्कलधारण का अनौचित्य बताना
»
श्लोक 35
श्लोक
2.37.35
एकस्य रामस्य वने निवास-
स्त्वया वृत: केकयराजपुत्रि।
विभूषितेयं प्रतिकर्मनित्या
वसत्वरण्ये सह राघवेण॥ ३५॥
अनुवाद
play_arrowpause
उन्होंने फिर कहा – ‘केकयराज की पुत्री! तूने अकेले श्रीराम के लिए ही वनवास का वर माँगा है (सीता के लिए नहीं); इसलिए ये राजकुमारी वस्त्राभूषणों से सुशोभित होकर सदा श्रृंगार धारण करके वन में श्रीरामचन्द्रजी के साथ निवास करें।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.