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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 37: श्रीराम आदि का वल्कल-वस्त्र-धारण, गुरु वसिष्ठ का कैकेयी को फटकारते हुए सीता के वल्कलधारण का अनौचित्य बताना
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श्लोक 33
श्लोक
2.37.33
द्रक्ष्यस्यद्यैव कैकेयि पशुव्यालमृगद्विजान्।
गच्छत: सह रामेण पादपांश्च तदुन्मुखान्॥ ३३॥
अनुवाद
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कैकेयी ! आज तुम स्वयं देखोगी कि श्री राम के वन जाते समय उनके साथ पशु, साँप, हिरण और पक्षी भी जा रहे हैं। अन्य प्राणियों की तो बात ही क्या, वृक्ष भी उनके साथ जाने के लिए उत्सुक हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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