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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 37: श्रीराम आदि का वल्कल-वस्त्र-धारण, गुरु वसिष्ठ का कैकेयी को फटकारते हुए सीता के वल्कलधारण का अनौचित्य बताना
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श्लोक 28
श्लोक
2.37.28
तत: शून्यां गतजनां वसुधां पादपै: सह।
त्वमेका शाधि दुर्वृत्ता प्रजानामहिते स्थिता॥ २८॥
अनुवाद
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तब तू वृक्षों सहित विरान और सूनी पृथ्वी पर अकेले ही राज कर। तू अत्यंत पाप करने वाली है और प्रजा के अहित करने में लगी हुई है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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