श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 37: श्रीराम आदि का वल्कल-वस्त्र-धारण, गुरु वसिष्ठ का कैकेयी को फटकारते हुए सीता के वल्कलधारण का अनौचित्य बताना  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  2.37.20-21 
 
 
तासामेवंविधा वाच: शृण्वन् दशरथात्मज:।
बबन्धैव तथा चीरं सीतया तुल्यशीलया॥ २०॥
चीरे गृहीते तु तया सबाष्पो नृपतेर्गुरु:।
निवार्य सीतां कैकेयीं वसिष्ठो वाक्यमब्रवीत्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  दशरथ के पुत्र श्रीराम ने माताओं की बातों को सुनकर भी सीता को वल्कल वस्त्र पहना दिया। सीता पति की तरह शील स्वभाव वाली थी। जब उसने वल्कल वस्त्र पहन लिया तो राजा के गुरु वसिष्ठजी की आँखों में आँसू भर आए। उन्होंने सीता को रोककर कैकेयी से कहा-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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