श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 35: सुमन्त्र के समझाने और फटकारने पर भी कैकेयी का टस-से-मस न होना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  2.35.26 
 
 
स तच्छ्रुत्वा वचस्तस्य प्रसन्नमनसो नृप:।
मातरं ते निरस्याशु विजहार कुबेरवत्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  केकय नरेश ने उस साधु के प्रसन्न चित्त वाले वचनों को सुनकर तुम्हारी माता को तुरंत घर से निकाल दिया और स्वयं कुबेर के समान विहार करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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