श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  2.34.61 
 
 
देव्य: समस्ता रुरुदु: समेता-
स्तां वर्जयित्वा नरदेवपत्नीम्।
रुदन् सुमन्त्रोऽपि जगाम मूर्च्छां
हाहाकृतं तत्र बभूव सर्वम्॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
 
  देवियों ने कैकेयी रानी को छोड़कर, सभी ने खूब रोना शुरू कर दिया। सुमन्त्र भी रो-रोकर बेहोश हो गए और वहाँ हर तरफ हाहाकार मच गया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे चतुस्त्रिंश: सर्ग:॥ ३४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें चौंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ३४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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