श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  2.34.56 
 
 
मया विसृष्टां भरतो महीमिमां
सशैलखण्डां सपुरोपकाननाम्।
शिवासु सीमास्वनुशास्तु केवलं
त्वया यदुक्तं नृपते तथास्तु तत्॥ ५६॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने सृजी हुई इस पूरी पृथ्वी को, जिसके पर्वतखंड, नगर और उपवन हैं, भरत मर्यादित और कल्याणकारी नियमों में रहकर संभालें। राजन्! आपके द्वारा दिया गया वचन पूर्ण हो, ऐसा ही हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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