श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  2.34.49 
 
 
न च शक्यं मया तात स्थातुं क्षणमपि प्रभो।
स शोकं धारयस्वेमं नहि मेऽस्ति विपर्यय:॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
 
  पिताजी! प्रभु! अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रह सकता। इसलिए आप इस शोक को अपने भीतर ही रखें। मैं अपने निश्चय के विपरीत कुछ नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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