श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  2.34.45 
 
 
नहि मे कांक्षितं राज्यं सुखमात्मनि वा प्रियम्।
यथानिदेशं कर्तुं वै तवैव रघुनन्दन॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! मैंने राज्य इसलिए नहीं चाहा कि उससे मुझे सुख मिले या मेरे प्रियजन प्रसन्न हों। मैंने केवल आपके आदेशों का पालन करने के लिए ही उसे स्वीकार करने की इच्छा की थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.