श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 43-44
 
 
श्लोक  2.34.43-44 
 
 
अहं निदेशं भवतो यथोक्तमनुपालयन्॥ ४३॥
चतुर्दश समा वत्स्ये वने वनचरै: सह।
मा विमर्शो वसुमती भरताय प्रदीयताम्॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं आपके आदेश का पालन करते हुए चौदह वर्षों तक जंगल में जानवरों के साथ रहूँगा। आपके मन में कोई अन्य विचार न हो। आप पूरी पृथ्वी भरत को दे दें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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