प्राप्स्यामि यानद्य गुणान् को मे श्वस्तान् प्रदास्यति।
अपक्रमणमेवात: सर्वकामैरहं वृणे॥ ४०॥
अनुवाद
मित्र, आज जो गुण (लाभ) मुझे इस यात्रा से मिलेंगे, उन्हें कल कौन मुझे देगा? इसलिए मैं सभी कामनाओं को छोड़कर आज ही यहाँ से निकल जाना ही अच्छा समझता हूँ और यही चुनता हूँ।