श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 34: सीता और लक्ष्मण सहित श्रीराम का रानियों सहित राजा दशरथ के पास जाकर वनवास के लिये विदा माँगना, राजा का शोक और मूर्छा  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.34.40 
 
 
प्राप्स्यामि यानद्य गुणान् को मे श्वस्तान् प्रदास्यति।
अपक्रमणमेवात: सर्वकामैरहं वृणे॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  मित्र, आज जो गुण (लाभ) मुझे इस यात्रा से मिलेंगे, उन्हें कल कौन मुझे देगा? इसलिए मैं सभी कामनाओं को छोड़कर आज ही यहाँ से निकल जाना ही अच्छा समझता हूँ और यही चुनता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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