श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 31: श्रीराम और लक्ष्मण का संवाद, श्रीराम की आज्ञा से लक्ष्मण का सुहृदों से पूछकर और दिव्य आयुध लाकर वनगमन के लिये तैयार होना  »  श्लोक 29-31
 
 
श्लोक  2.31.29-31 
 
 
ये च राज्ञो ददौ दिव्ये महात्मा वरुण: स्वयम्।
जनकस्य महायज्ञे धनुषी रौद्रदर्शने॥ २९॥
अभेद्ये कवचे दिव्ये तूणी चाक्षय्यसायकौ।
आदित्यविमलाभौ द्वौ खड्गौ हेमपरिष्कृतौ॥ ३०॥
सत्कृत्य निहितं सर्वमेतदाचार्यसद्मनि।
सर्वमायुधमादाय क्षिप्रमाव्रज लक्ष्मण॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन् जनक के महायज्ञ में महात्मा वरुण ने उन्हें साक्षात् दो भयंकर दिव्य धनुष, दो अभेद्य दिव्य कवच, अक्षय बाणों से भरे हुए दो तरकस और सूर्य के समान निर्मल दीप्ति से चमकते हुए दो सुवर्णभूषित खड्ग प्रदान किए थे। उन सबको आपने मुझे दहेज में दिया था, वे सभी दिव्यास्त्र आचार्य देव के घर में सत्कारपूर्वक रखे हुए हैं। तुम शीघ्रता से जाकर उन सभी आयुधों को लेकर लौट आओ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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